गुप्त ज्ञान – यौवन की भूलें
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यौवनकाल एक तूफानी आँधी है।
कामसंबंधी बातों की सही जानकारी न जानने के कारण नवयुवक इस आँधी के वेग में भारी भूलें(गलतियाँ) कर बैठते हैं, जिसके फलस्वरूप उनकी जवानी बिखर जाती है और वह यौवन के सच्चे आनंद से वंचित रह जाते हैं।
उन्हें जननेन्द्रिय संबंधी पुरूषत्वनाशक रोग हो जाते हैं।
ऐसी हालत में वह अपने चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा देखते हैं।
चूँकि समाज में इस प्रकार के रोगी को बहुत घृणा से देखा जाता है।
इसलिए ऐसे रोगी शर्म के कारण अपने रोगों को छुपाया करते हैं और कभी भी उचित विधि से चिकित्सा नहीं कराते हैं।
बल्कि चुपचाप छुपकर इधर-उधर के कुछ भड़कीले विज्ञापनों की दवाईयों के चक्कर में पड़कर अपने रहे-सहे पुरूषत्व और यौवन का भी नाश कर लेते हैं।
इस प्रकार की बहुत-सी घटनायें देखने और सुनने में भी आती हैं |
ऐसे रोगों से परेशान, दुःखी और मायूस होकर बहुत से युवक आत्महत्या तक करके अपनी जीवन समाप्त कर लेते हैं।
वास्तव में स्वप्नदोष, प्रमेह, नपुंसकता, शीघ्रपतन आदि पुरूषत्व संबंधी रोग कोई हव्वा या भूत नहीं है।
इनके रोगियों को घबराना नहीं चाहिए, बल्कि सावधानी, धैर्य व बुद्धि से काम लेना चाहिए |
और किसी विश्वसनीय व प्रसिद्ध चिकित्सालय में कुशल चिकित्स को दिखाना चाहिए, ताकि रोग के मूल कारण को जानकर वे इसका समूल नाश कर सकें। पुरूष लोग किसी भी प्रकार गुप्त रोग व सेक्स रोग होने पर घबराने लगते हैं और खुद ही स्वयं के ऊपर गलत धारणायें बना बैठते हैं।
जिस प्रकार ज्वर, खाँसी, पेचिश, जुकाम आदि रोग होने पर हम घबराते नहीं हैं |
और इन रोगो का उपचार करते है , उसी तरह हमे गुप्त रोगो का भी उपचार करवाना चाहिए |
उसी प्रकार पुरूष संबंधी रोग भी होते हैं, जिनका उचित उपचार आयर्वेद में उपब्लध है।
कारण व उपचार
इस बात को हम अच्छी प्रकार समझा देना चाहते हैं कि इस प्रकार के रोगों से पीड़ित होना कोई पाप नहीं है |
और इसके बारे में कभी-भी शर्म नहीं करनी चाहिए।
अन्य रोगों की भाँति यह भी रोग ही है, जोकि हमको ही हुआ करते हैं।
एक चिकित्सक के नाते अनुभव के बल पर हम यह कह सकते हैं कि बहुत से नवयुवक तो केवल वहम और अपने विचारों की दुर्बलता के कारण ही अपने को ऐसे रोगों का शिकार समझने लगते हैं।
उन्हें व्यर्थ ही यह वहम हो जाता है कि वे ‘नपुंसक’ हैं और मैथुन के अयोग्य हैं।
वास्तव में उन्हें इस प्रकार की कोई शिकायत नहीं होती है|
वे केवल ख्याली नपुंसकता से पीड़ित होते हैं |
और ख्याली नपुंसकता असली नपुंसकता से भी अधिक भयंकर होती है।
इसके भय से व्यक्ति अपने प्रेमपात्र से भी दूर रहने लगता है।
ऐसी हालत में जरूरत इस बात की होती है कि मन से रोग के वहम और भय को बड़ी समझदारी और गंभीरता से निकाल दिया जाये।
वास्तव में एक सच्चा और ईमानदार चिकित्सक ही इस भ्रम को दूर करके रोगी का पिण्ड वहम से छुड़ा सकता है।
एक सच्चे चिकित्सक के नाते रोगियों के मन में बैठी हुई गलत धारणाओं को निकाल कर उन्हें पूर्ण स्वस्थ बनाने में सहयोग देना ही चिकित्सक का मुख्य उद्देश्य है।
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