अण्डकोष का इलाज

अण्डवृद्धि और उसके उपचार

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प्रजनन अंगों में अण्ड अर्थात् वृषण का महत्वपूर्ण स्थान है, जो कि पुरूषांग उपस्थ के ठीक नीचे लटके रहते हैं। अण्ड के समान आकार के यह दो अवयव एक थैली-सी में विद्यमान रहते हैं, जिन्हें अण्डकोष कहा जाता है। सामान्यतः यह ढाई-ढाई सेंटीमीटर चैड़े-मोटे और 4 सेंटीमीटर तक लम्बे होते हैं। प्रत्येक अण्ड में लगभग 1000 पतली तथा मुड़ी हुई नलिकाएँ होती हैं। प्रत्येक नलिका 60 से 90 सेंटीमीटर तक लम्बी होती है। यह अण्ड उन्हीं नलिकाओं के गुच्छ स्वरूप हैं तथा पुरूष का वीर्य उन्हीं नलिकाओं में बनता है तथा यहीं से शुक्राशय में पहुँचता है।

देसी घरेलू उपचार-

1. ढाक के पुष्पों को पानी के साथ औटावें। खोलने पर उतार कर ठंडा होने दें।

इसका सुहाता-सुहाता तरड़ा देने से अण्डवृद्धि और उसमें उत्पन्न शोथ, शूलादि का शमन होता है।

2. यदि अण्डकोष किसी प्रकार के आघात से चुटीले हुए हों, उनमें सूजन और दर्द हो, तो तम्बाकू के ताजा पत्ते पर घृत चुपड़ कर, किंचित गर्म करें और अण्डकोषों पर बांध दें।

इससे शोथ, दर्द आदि में शीघ्र लाभ होगा।

3. कच्चा पपीता लेकर, ऊपर से छीलें और भीतर से बीज भी निकाल फेंके। बढ़े हुए अण्डकोष इस पपीते में करके ऊपर से लंगोट बांधें। इस प्रयोग से अण्डवृद्धि और उससे होने वाले शोथ, दर्द आदि उपसर्गों में शीघ्र लाभ होता है।

Andkosh Ka Ilaj

 

 

 

4. अण्डवृद्धि और उसके उपसर्ग दूर करने के लिए सोंठ, कुन्दरू, तम्बाकू, मस्तगी, आँवा हल्दी, पोस्त डोडा, वच, वत्सनाग सब समान भाग लेकर महीन चूर्ण करें और मकोय-स्वरस के साथ आधे-आधे ग्राम के लगभग अथवा कुछ बड़ी गोलियाँ बना लें। यह गोली पानी के साथ घिसकर अण्डकोषों पर लगावें और इसी चूर्ण की पोटली से किचिंत् गर्म सेंक थोड़ी देर करें। इससे वृद्धि का शमन होता है।

अगर आपको यह बीमारी है, तो तुरंत अपने नज़दीकी sexologist को दिखाए |

5. कुन्दरू, लोध, फिटकरी, गन्धा, बिरोजा और गुग्गल समान भाग को पानी के साथ पीसकर लेप करना चाहिए।

इस प्रयोग से भी सब प्रकार की अण्डवृद्धि नष्ट होती है।

6. शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध तूतिया, सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, हरड़, बहेड़ा, आमला, चव्य, चित्रक, कचूर, पाठा, पीपलामूल, वायविडंग, विधायरा, वच, हाऊबेर, देवदारू, इलायची के बीज, पाँचों नमक, वंग भस्म, लौह भस्म, ताम्र भस्म, कांस्य भस्म, शंख भस्म और कौड़ी-भस्म, यह सभी समान भाग लें। सभी काष्ठौषधियों को कूट-कपड़छन करें। उनमें तूतिया और नमक भी पृथक-पृथक पीसकर मिलायें। तदुपरान्त सभी भस्में मिलानी चाहिए। पारद-गन्धक की कज्जली करके मिलाई जाये। फिर हरड़ का क्वाथ बनायें और इन सब एकत्रित द्रव्यों को उस क्वाथ के साथ घण्टे तक घोट कर 250-250 मि.ग्रा. की वटी बनाकर तथा सूखने पर सुरक्षित रखें।

मात्रा- 1 से 3 वटी तक रोगी का बलाबल देखकर देनी चाहिए। इसका प्रयोग सुबह-शाम त्रिफला-क्वाथ के साथ करना अधिक उपयुक्त है। कभी त्रिफला-क्वाथ न बन सके, तो ताजा पानी के साथ ले सकत हैं। इसके सेवन से असाध्य अण्डवृद्धि भी दूर हो जाती है।

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