अण्डकोष की सूजन का देसी आयुर्वेदिक इलाज

परिचय-

इस रोग में अण्डकोषों के आकार में वृद्धि हो जाती है। लेकिन यहां इस रोग में आकार की वृद्धि का कारण अण्डकोषों में पानी भर जाना(जमा होना) नहीं है, बल्कि ‘अण्डग्रन्थि में सूजन’ होती है।

कारण-

अण्डग्रन्थि(वृषण) में चोट लगना, कनफेड(Mumps), सुजाक, आतशक, मूत्राशय शोथ, मूत्राशय में रेत या पथरी होना, जोड़ों की शोथ एवं दर्द का पुराना रोग, सर्दी लग जाना, साइकिल या घोड़े की सवारी में वृषणों का दब जाना आदि मुख्य कारण हैं।

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लक्षण-

वृषण(अण्डग्रन्थि) कठोर हो जाते हैं, उनमें सूजन हो जाती है। इसकी टीसें कमर, पेट, जाँघ तक जाती है। इस रोग में ज्वर और कभी-कभी मिचली के लक्षण भी होते हैं।
यदि रोग के संक्रमण का कारण सुजाक हो तो वृषणों के सूज जाने से मूत्र मार्ग से पीप आनी बंद हो जाती है। कनपेड़ों की सूजन स्पष्ट दिखाई देती है। यदि समय पर चिकित्सा नहीं की जाये तो वृषण छोटे रह जाते हैं। उनमें शुक्रकीट नहीं बन पाते और रोगी गर्भाधान करने के योग्य नहीं रहता है।

चिकित्सा-

1. रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रोगी आराम करे। दोनों जाँघों के बीच नरम तकिया रखकर उस पर अण्डकोषों को रखे, जिससे वृषणों को आराम मिले।

2. प्रारम्भिक अवस्था में वृषणों पर बर्फ रखें। परन्तु सूजन अधिक हो तो दिन में 3-4 बार गर्म पानी और पोस्त डोडा की टकोर आधा घंटा तक करें। टकोर करने के बाद बेलाडोना ग्लीरीन लगाकर रूई रखकर लंगोट या पट्टी इस प्रकार बांधे जिससे अण्डकोष लटकने की बजाये ऊपर की ओर उठे रहें।

3. जब सूजन कम होने लगे तो बेलाडोना या मर्क्युरीअल प्लास्टर के साथ स्ट्रैप करना लाभदायक है।

4. सूजन कम हो जाने के बाद वृषणों में कठोरता हो तो आयोडीन या आयोडीन ऑफ लेड की मरहम लगायें।

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अण्डग्रन्थि(वृषण) शोथ की उपयोगी आयुर्वेदिक घरेलू चिकित्सा-

Aandkosh Ki Sujan Ka Desi Ayurvedic Ilaj

1. मद्य(शराब) के साथ खुरासानी अजवाइन पीसकर अण्डकोषों के प्रदाह पर लेप करने से सूजन एवं दर्द दूर हो जाता है।

2. सफेद जीरा, मदिरा में मिलाकर लेप करने से अण्डकोषों की सूजन एवं दर्द कम हो जाता है।

3. शिलारस में तिलों के तेल की चैगुनी मात्रा मिलाकर अण्डकोषों पर लगाकर तम्बाकू या धतूरे के पत्ते गर्म करके बांधने से लाभ होता है।

4. अण्डशोथ पर धतूरे के पत्ते का लेप करके ऊपर से धतूरे का ही पत्ता लपेट कर बांधने से लाभ होता है।

5. सिनुआर के पत्तों का रस 15 से 30 मि.ली. नित्य सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।

6. सिनुआर, धतूरे, करंज एवं नीम के पत्तों को पीसकर लेप करने से अण्डग्रन्थि शोथ में लाभ होता है।

7. महुआ के फलों से सेंक करने से अण्डग्रन्थि की सूजन और पीड़ा दूर हो जाती है।

8. इसबगोल का गाढ़ा लेप करके धतूरे का पत्ता लपेट कर बांधने से लाभ होता है।

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9. सौंफ का चूर्ण 6-6 ग्राम सुबह-शाम दें। प्रथम मात्रा से ही लाभ होने लगता है।

10. तिसी की पुल्टिस एरण्ड के पत्ते पर लगाकर शुष्म करके बांधने से अण्डकोषों का प्रदाह दूर हो जाता है।

11. जंगली अजवायन का क्वाथ 50 मि.ली. सिरका एवं शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से लाभ होता है। इससे मूत्र भी साफ आने लगता है।

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