बांझपन दूर करने की आयुर्वेदिक चिकित्सा

Banjhpan Door Karne Ki Ayurvedic Chikitsa, Infertility, Infertility Treatment in Ayurveda

इस रोग में स्त्री संतान उत्पन्न के अयोग्य होती है। इसके कई कारण हो सकते हैं।

यदि स्त्री गर्भाशय या डिम्बकोष नाल में कोई नैसंर्गिक विकार(Natural disorder) हो, तो यह रोग प्रायः असाध्य होता है।

रोग के मूल कारण जानकर उचित चिकित्सा करनी चाहिए।

कई बार स्त्री के अंदर शरीर में प्राकृतिक विकार होते हैं। सबसे पहला विकार तो प्रायः योनि की तंगी है। इस अवस्था में संभोग के दौरान स्त्री को बेहद कष्ट होता है तथा स्त्री इससे घृणा करती है, तो फिर गर्भ ठहरने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। इसकी चिकित्सा आॅपरेशन है।

गर्भाशय के मुंह की तंगी दूसरा कारण है। इससे भी गर्भ ठहर पाना असंभव होता है।

संभोग करने की विधि-

गलत विधियों से सम्भोग करने से भी गर्भ नहीं ठहर पाता है, अतः पति-पत्नी को गर्भ ठहराने के लिए सही संभोग विधि अपनाने से अवश्य ही सफलता मिलती है। शर्त यह है कि पति-पत्नी दोनों में से किसी में विकार न हो तथा पत्नी को स्पष्ट ज्ञान हो कि उसका डिम्बावतरण काल चल रहा है।

नितम्बों को 1-2 मोटे तकिये के ऊपर रखकर स्त्री ऐसी लेटी रहे, जिससे नितम्ब ऊपर उठे रहें और सिर नीचे को रहे।

उस दिन शाम को पानी तथा तरल पैय इत्यादि अधिक नहीं पीना चाहिए, ताकि संभोग के बाद मूत्र के लिए उठना न पडे़।

अब संभोग द्वारा शुक्र(वीर्य) का स्खलन होते ही संभोग कार्य रोक देना चाहिए, ताकि सम्पूर्ण वीर्य स्खलन, योनि में आ जाए।

क्योंकि नितम्ब ऊँचे होंगे, अतः शुक्र को बाहर निकलने का अवसर ही नहीं मिलेगा।

फिर सिर नीचे होने से गर्भाशय और आंतों की ओर सरक जायेगी तो योनि और ज्यादा खुली तथा अधिक स्थान उसमें होगा।

संभोग के बाद पुरूष अलग हो जाये और स्त्री को लगभग दो घण्टे तक ऐसे ही लेटे रहने को कहे।

स्त्री लम्बी-लम्बी सांसें लेती रहे, जिससे वीर्य गर्भाशय में जा सके।

दो घण्टे बाद दोबारा संभोग द्वारा स्खलन योनि में कराना चाहिए।

इस प्रकार अपनी क्षमतानुसार संभोग द्वारा शुक्र को गर्भाशय के समीप डाल कर उसे जितनी देर भी वहां पड़े रहना दिया जायेगा, उतनी ही अधिक संभावना गर्भस्थापन की होगी। 2-4 घण्टे के उपरान्त करवट इत्यादि ली जा सकती है।

इस प्रकार 2-3 दिन डिम्बावतरण काल में संभोग करने से अनेकों ऐसी स्त्रियों ने गर्भधारण किया है, जिनको हर ओर से निराशा हो चुकी थी।

अतः गलत संभोग भी स्वस्थ स्त्री को एक तरह से बांझ बनाये रखता है।

बांझपन में आयुर्वेदिक चिकित्सा-

	 Banjhpan Door Karne Ki Ayurvedic Chikitsa

 

1. सुपारी पाक: जो स्त्री व पुरूष संतान से वचिंत हों और उनमें कोई विकार न हो तो 40 दिन इसको(सुपारी पाक) खाने से उनको संतान हो जाती है।

10 ग्राम प्रतिदिन सुबह खाली पेट और रात में पाव भर दूध से खायें।

2. माजून सुपारी पाक: माजून सुपारी पाक(जौहर/प्राणाचार्य) 10 ग्राम सुबह-शाम दूध से खायें तथा फेनीक्योर(जौहर लैब) 1-1 कैप्सूल 3 बार पानी के साथ लें। यह उन बांझ स्त्रियों के लिए लाभप्रद है, जिनको विवाह होने के काफी समय बाद तक बच्चा नहीं हुआ, जो बच्चे के लिए तरसती हो।

यह दवा गर्भाशय की तमाम विकारों और कमजोरियों को दूर करके गर्भधारण करने की क्षमता पैदा करती है।

3. भांग के पत्ते 4 ग्राम, कस्तूरी(मुश्क) 4 मि.ग्रा., केसर 20 ग्राम, लौंग 8 नग, जायफल 2 नग, दक्खनी सुपारी 6 नग, अफीम 2 ग्राम, गुड़ 6 ग्राम। सबको अलग-अलग पीसकर व छानकर और गुड़ मिलाकर चने के बराबर गोलियां बना लें। 1-1 टिकिया सुबह बछड़े वाली गाय के दूध के साथ खिलाते रहें।

4. यदि 40 वर्षीय स्त्री को भी बांझपन हो तो कस्तूरी 2 मि.ग्रा., अफीम 3 ग्रा., जायफल, केसर, भंग के बीच प्रत्येक 1 ग्राम, नोफल तेलिया 3 ग्राम, लौंग 4 ग्राम।

सबको पीसकर गुड़ मिलाकर जंगली बेर के बराबर गोलियां बना लें।

मासिक धर्म से निवृत होने के बाद तीन दिन में तीन गोलियां लें। बांझपन दूर हो जायेगा।

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5. बच का चूर्ण 3 ग्राम मक्खन में लपेट कर मासिक धर्म आ चुकने के बाद तीन दिन तक खिलायें।

इसी प्रकार प्रत्येक मास यह औषधि मासिक धर्म के बाद तीन माह तक लेते रहें, स्त्री गर्भवती हो जायेगी।

6. करंज की छाल और लहसुन दोनों, समान मात्रा में लेकर दोनों को पीसकर 6 ग्राम दही में लपेट कर खिलायें। बांझपन में फायदेमंद है।

7. अशोकारिष्ट और दशमूलारिष्ट दोनों 2-2 चम्मच बराबर पानी मिला कर दोनों समय भोजन के बाद लें। बांझपन में उपयोगी है।

8. फेमटोन(आयुलैब्स) 2-2 चम्मच लगातार कई माह तक पिलाते रहें। यह गर्भ ठहरने में मदद करती है।

9. अशोगाइन कैप्सूल 1-1 कैप्सूल 2-3 बार एवं अशोगाइन सीरप(आयुरलैब्स) 2-2 चम्मच जब तक गर्भ न ठहरे तब तक स्त्री को देते रहें।

10. चन्द्रपभा वटी 2-2 गोलियां 2 बार चबाकर दूध पीने के लिए दें।

11. फलघृत 1-1 चम्मच 2 बार दूध के साथ दें।

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