धातु दुर्बलता (Sexual Debility)-
Dhatu Ki Samasya Ke Liye Desi Gharelu Nuskhe, Sexual Debility
इस रोग को धातु दौर्बल्य, धातु क्षीणता अथवा धातु की कमजोरी नाम से भी पुकारा जाता है। धातु और वीर्य एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। वीर्य अथवा धातु कम हो जाना, क्षीण हो जाना अथवा एकदम नष्ट हो जाना, धातु दुर्बलता की श्रेणी में आते हैं।
धातु दुर्बलता के प्रमुख कारण-
1. अत्यधिक शोकमग्न रहना।
2. अत्यधिक डर-भय ग्रस्त रहना।
3. मानसिक दुर्बलता।
4. शारीरिक दुर्बलता।
5. पौष्टिक आहार न मिलना।
6. अत्यधिक रूक्ष अन्न सेवन करना।
7. बुढ़ापे के विकार।
8. अत्यधिक कर्षण कर्म करना।
9. अत्यधिक व्रत-उपवास करना।
10. अत्यधिक मैथुन करना।
11. अत्यधिक स्त्रियों का विचार करते रहना।
12. शुक्र शीण हो जाना।
13. रस, रक्त क्षीण हो जाना।
14. माँस-मज्जा क्षीण हो जाना।
15. उदर विकार ग्रस्त रहना।
16. अश्लील साहित्य पढ़ना तथा बुरी आदतों में पड़े रहना।
धातु दुर्बलता के प्रमुख लक्षण-
1. रोगी उदास गमगीन-सा बना रहता है।
2. रोगी सुस्त रहता है।
3. रोगी अनायास थकावट अनुभव करता है।
4. रोगी का किसी काम में मन नहीं लगता।
5. रक्ताभाव हो जाता है।
6. रोगी उदर विकारों से पीड़ित रहता है।
7. रोगी मुख सूखने की शिकायत करता है।
8. रोगी आंशिक नपुंसकता का शिकार हो जाता है।
9. रोगी के शरीर में कंपकंपी होती है।
10. शरीर के अंगों में पीड़ा वेदना रहती है।
11. रोगी का शरीर पीला हो जाता है।
12. चेहरा कांतिहीन हो जाता है।
13. आंखें निस्तेज हो जाती हैं।
14. रोगी दुबला-पतला कृशकाय हो जाता है।
15. इन्द्रियाँ कमजोर पड़ जाती है।
16. चेतना का अभाव हो जाता है।
17. नपुंसकता का शिकार हो जाता है।
18. शिश्न में वेदना होती है।
19. श्वास-कास ग्रस्त रहता है।
20. अण्डकोष में वेदना रहती है।
21. रक्त मिला शुक्र आना।
धातु विकार दूर करने के लिए देसी नुस्खे-
1. धाय के पुष्प, श्वेत चन्दन, साल वृक्ष की छाल, अर्जुन की छाल 50-50 ग्राम लेकर जौकुट चूर्ण कर लें। इसमें से 40 ग्राम चूर्ण लेकर चैगुने पानी के साथ काढ़ा करें और छानकर ठंडा कर लें। फिर इसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर प्रमेह के रोगी को सेवन करायें। कुछ दिन लगातार सेवन करने से सब प्रकार के प्रमेह में लाभ होता है। सभी धातु विकार नष्ट होकर शरीर में ऊर्जा आती है।
2. ईसबगोल 10-10 ग्राम लेकर एक पाव गोदुग्ध के साथ पका कर खीर बनायें। इसका सेवन सुबह के समय नाश्ते के रूप में करना चाहिए। यह खीर प्रमेह, स्वप्नदोष, धातु क्षय, वीर्य का पतलापन आदि विकारों को दूर करने में बेहद उपयोगी है।
3. काली मिर्च, ग्वारपाठे का गूदा, सेंधा नमक और असली घी मिला कर सेवन करने से सब प्रकार के प्रमेहों में लाभ होता है।
4. शिलाजीत शुद्ध, शंखपुष्पी, छोटी इलायची के बीज और मिश्री समान भाग लेकर कूट-छानकर चूर्ण करें।
मात्रा- 3-4 ग्राम चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करें। कुछ दिनों के प्रयोग से सब प्रकार के प्रमेहों में लाभ होता है।
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5. केवल शुद्ध शिलाजीत 1-2 ग्राम तक की मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से धातु रोग व हर धातु समस्या दूर हो जाती है।
6. तुलसी के बीज कूट-कपड़छन करें। इसका सेवन ताजा पानी के साथ अथवा लक्षणानुसार उचित अनुपान के साथ करने से वीर्यस्राव, वीर्य का पतलापन तथा स्वप्नदोष में बहुत लाभ पहुंचता है।
7. तालमखाना, मुलहठी, छोटी इलायची के दाने, पाषाणभेद, वंशलोचन, बीहीदाना, सतगिलोय, शुद्ध शीलाजीत और वंग-भस्म को, यह सभी द्रव्य समान भाग लें तथा सभी काष्ठौषधियों का कपड़छन चूर्ण करें और शीलाजीत आदि को को अलग-अलग खरल करके उसमें मिला लें। फिर वंग-भस्म डालकर, सभी द्रव्यों के एकत्रित भार के बराबर मिश्री पीसकर मिला दें।
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