लिंग टाइट करने की मेडिसिन

Ling Tight Karne Ki Medicine, Penis Disorders, Erectile Dysfunction, Penis Erection

कई पुरूषों के लिंग में जोश उत्पन्न नहीं होता। रोगी इस अवस्था को नपुंसकता समझ लेता है। चिकित्सा के लिए आने वाले ऐसे कुछ रोगी शिकायत करते हैं कि उनका लिंग मैथुन के पूर्व तो जोश में आता है, लेकिन मैथुन के समय एकाएक ढीला हो शिथिल पड़ जाता है। कुछ रोगी बताते हैं कि मैथुन प्रारम्भ होते ही लिंग का तनाव कम हो जाता है। कुछ रोगियों का कहना है कि स्त्री के सामने लिंग में तनाव नहीं आता, लेकिन हस्तमैथुन के समय तनाव आता है, इसके बावजूद भी वे पूर्ण आनंद प्राप्त नहीं कर पाते।

Ling Tight Karne Ki Medicine

कई रोगियों का कथन है कि मन में पूर्ण उत्तेजना रहती है, लेकिन शिश्न उत्थित हो साथ नहीं देता, इसलिए कामना पूरी नहीं हो पाती। कई पुरूषों का शिश्न इतना नम्र और असहाय हो जाता है कि वे योनि में शिश्न प्रविष्ट ही नहीं कर पाते। इस प्रकार के विकार से पीड़ित पुरूष अधिकांशतः शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, धातुक्षीणता, वीर्य का पतलापन, स्नायु दुर्बलता, कमजोरी, वीर्य प्रमेह आदि के शिकार रहते हैं। शिश्न में तनाव-जोश या उत्तेजना उत्पन्न करने की अति उपयोगी, असरकारक आयुर्वेदिक चिकित्सा नीचे विस्तार से उल्लेख की जा रही है।

लिंग में जोश व तनाव न आने की आयुर्वेदिक चिकित्सा-

1. योग-

अकरकरा 10 ग्राम, मिश्री 100 ग्राम, तुख्मरिहा 80 ग्राम।
विधि- उपर्युक्त तीनों औषधियाँ एकत्र करें। तीनों को घोट-पीसकर एक जान कर लें। पूर्ण पिस जाने के बाद तीनों को छान लें। यह चूर्ण कई रोगों की एक दवा है। 10 ग्राम चूर्ण दिन में 2 बार सुबह-शाम सेवन करने का निर्देश देने से पीड़ित रोगी को आशातीत लाभ प्राप्त होता है। मैथुन से एक घण्टा पूर्व सेवन करने को यदि दिया जाये तो रोगी पूर्ण सक्षमता से मैथुन करता है। इसके सेवन से वीर्य के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। वीर्य गाढ़ा हो जाता है। नपुंसकता-नामर्दी का अन्त हो जाता है। शिश्न शक्तिशाली हो जाता है। रोगी को पूर्ण तृप्ति प्राप्त होती है।

2. योग-

हरताल, बच्छनाग, नौशादर, प्रत्येक 15-15 ग्राम। घी आवश्यकतानुसार, पारा अल्पमात्रा।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियों को एकत्र करें। पारा तथा घी को छोड़कर बाकी तीनों औषधियाँ कूट-पीसकर एक कर लें। उसके पश्चात् उसमें प्रथम घी मिला दें तथा उसके पश्चात् उसमें अल्प मात्रा में पारा शामिल कर लें। इन सभी औषधियों को एक कपड़े में लपेट कर एक ओर से जला दें और एक खूंटी में टांग दें। उसके पश्चात् जलने वाले भाग से एक द्रव गिरने लगेगा। उस द्रव को एकत्र कर एक शीशी में सुरक्षित रख लें। यह द्रव जो तेल सरीखा होता है, को शिश्न पर थोड़ा-सा मलने का निर्देश दें। इस तिले के प्रयोग से शिश्न में आशातीत कठोरता आने लग जाती है और मैथुन सक्षमता बढ़ जाती है।

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3. योग-

दूब 30 ग्राम, बकरी का दूध ढाई लीटर, सेंधा नमक 30 ग्राम, घी 250 ग्राम, असगंध 30 ग्राम।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियाँ अति उपयोगी होती हैं। बकरी का दूध लेना अधिक हितकर है। बकरी का दूध न मिले तो गाय का दूध लें। उपर्युक्त सभी औषधियाँ घी सहित दूध में डालकर भली-भाँति पका लें। जब दूध पूरी तरह से जल जाये, केवल घी शेष रहे, तब उतार कर छान लें और इस घी को किसी पेचदार ढक्कन वाली काँच की शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। इस घी को शिश्न पर मलने से शिश्न पूर्ण सक्षम, शक्तिशाली, सबल और मजबूत हो जाता है। ढीला-ढाला, असहाय शिश्न पूर्ण सक्षमता से कठोर एवं उत्तेजित होकर मैथुन योग्य बन जाता है।

4. योग-

अकरकरा, अफीम, सिंगरफ और जायफल प्रत्येक 12-12 ग्राम।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियाँ अतिशय गुणकारी होती हैं। इसका शक्तिशाली प्रभाव पुरूषों को नई जीवन शक्ति प्रदान करता है। ऊपर लिखी चारों औषधियाँ प्राप्त करें और घोट-पीसकर एक जान कर लें। पूर्ण रूप से भली-भाँति कुट-पीस जाने के पश्चात् छान लें। 125 मि.ग्रा. की एक मात्रा दिन में 2 बार अथवा आवश्यकतानुसार सेवन करने का निर्देश दें। इस चूर्ण की 125-125 मि.ग्रा. की गोलियाँ भी निर्माण कर रखी जा सकती हैं। जरूरत पड़ने पर यह गोली भी प्रयोग करायी जा सकती है।

यह अति उपयोगी, असरकारक एवं श्रेष्ठ प्रभाव उत्पन्न करने वाला गुणकारी योग है।

मैथुन पूर्व प्रयोग करने से आनंद, तृप्ति प्राप्त हो जाती है।

कफ प्रवृत्ति तथा ठण्डे स्वभाव के लोगों के लिए यह रामबाण औषधि है।

गर्म दूध के साथ चूर्ण रूप में अथवा गोलियों के रूप में प्रयोग कराना हितकर है।

अति तीव्र अवस्था होने पर 2 गोलियाँ रात को सोते समय मैथुन पूर्व प्रयोग करने का निर्देश दें।

5. योग-

तालमखाना, शतावर, कौंच के बीज छिले हुए, खरेटी के बीज और गोखरू प्रत्येक 60-60 ग्राम। मिश्री उपुर्यक्त सभी औषधियों के वजन की आधी मात्रा।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियाँ प्राप्त करें और अलग-अलग घोट-पीसकर तथा छानकर आपस में मिलाकर एक जान कर लें। अंत में बारीक पिसी हुई मिश्री मिलाकर सबको एक कर लें। इस चूर्ण को किसी शीशी में भरकर रख लें। इस चूर्ण की 6-6 ग्राम की एक-एक मात्रा दिन में 2 बार अथावा आवश्यकतानुसार गाय के दूध के साथ प्रयोग करने का निर्देश दें। यह अति गुणकारी चूर्ण है। इसके सेवन से शिश्न शक्तिशाली हो जाता है।

6. योग-

पिप्पली, सुहागा, धतूरे का रस, जमीकंद का रस, घी, कर्पूर और मधु प्रत्येक 12-12 ग्राम लें।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियाँ प्राप्त करें। इन सभी औषधियों को घोट-पीसकर एक जान कर लें। जब अच्छी तरह घुट-पीस जाये तब एक पेचदार ढक्कन वाले काँच की शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। यह अति उपयोगी, असरकारक तिला है। यह तिला शिश्न को भरपूर शक्ति प्रदान करता है। असहाय, कमजोर और दुर्बल शिश्न के अंदर आश्चर्यनजक जोश एवं तेजी आ जाती है। लिंग पर्याप्त कठोर होने लगता है। आवश्यक मात्रा लेकर लिंग पर हल्के हाथ से मालिश करने का निर्देश दें। छोटा लिंग इसके प्रयोग से लंबा तथा पतला लिंग मोटा हो जाता है। लिंग को छोड़कर लिंगमुण्ड और सीवन पर मत लगायें।

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