पेशाब में जलन और दर्द की आयुर्वेदिक दवा
Peshab Me Jalan Aur Dard Ki Ayurvedic Dawa, Dysuria
परिचय-
मूत्र जलन के साथ या असहनीय पीड़ा के साथ थोड़ा-थोड़ा, बूंद-बूंद आता है। पेशाब की हाज़त बराबर बनी रहती है, लेकिन मूत्र खुलकर नहीं आता है। रोग की उग्रता अधिक हो तो मूत्र करते समय रोगी पीड़ा के कारण रोने लगता है। मूत्रकृच्छता, मूत्र में जलन होना, मूत्र पीड़ा के साथ बूंद-बूंद आना आदि सभी गंभीर रोग के सूचक हो सकते है | इस रोग में निम्न योग प्रभावी है।
चिकित्सा-
1. मुनक्का को बासी जल में चटनी की भांति पीसकर जल के साथ लेने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है।
2. अनानास का रस मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से मूत्र वृद्धि होती है।
3. जवाखार के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करने से मूत्र वृद्धि होती है।
4. अमलतास के पंचांग को जल में पीसकर पेड़ू पर लेप करने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है। मात्र इसका गूदा ही पानी में पीसकर नाभि पर लेप करने से मूत्र खुलकर आ जाता है।
5. आंवलों के 25 मि.ली. रस में इलायची का चूर्ण भुरभुरा डालकर नित्य सुबह-शाम पीने से मूत्रकृच्छता मेें लाभ होता है।
6. लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की दाल, बहेड़ा और आंवला प्रत्येक बराबर लेकर दरदरा कूटर, काढ़ा बनाकर शीतल होने पर शहद मिलाकर नित्य दो बार पीने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है।
7. इलायची को सेंककर मस्तगी के साथ दूध से फंक्की लेने से मूत्राशय की जलन में लाभ होता है।
8. बड़ी इलायची के बीज(दाने) खरबूजे के बीजों के साथ पीसकर पानी में घोंटकर पीने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है।
9. ईसबगोल के लुआब में बूरा मिलाकर पीने से मूत्र की जलन ठीक हो जाती है।
10. ईसबगोल, शीतल मिर्च और कलमीशोरे की फंक्की लेने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है।
11. उटंगन के बीजों को पीसकर मट्ठे के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है।
12. तालमखाना और मिश्री के साथ ऊंटकारा की जड़ पीसकर लेने से मूत्रकृच्छ दूर हो जाती है।
13. ककड़ी के बीजों को पीस, घोंटकर पीने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है।
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14. कांगुनी का तेल 15 से 60 बूंद दूध की लस्सी में मिलाकर पीने से मूत्रवृद्धि होती है।
15. कड़वी तोरई की जड़, जसून्द की जड़ और सारिया का दूध तथा जीरे को शक्कर के साथ लेने से मूत्रकृच्छता में लाभ होता है।
16. कपास की जड़ का काढ़ा पीने से मूत्र करते समय की जलन ठीक हो जाती है और मूत्र खुलकर आता है।
17. गम्भारी के कोमल पत्तों का अर्क पीने से मूत्रकृच्छता की दाह मिट जाती है।
18. कमरकस(एक प्रकार का गोंद) यूनानी मतानुसार यह मूत्र की जलन को दूर करता है।
19. कस्तूरी दाना(मुश्कदाना) यह एक प्रकार की वनस्पति है। इसकी जड़ और पत्तों का चेप निकाल कर मूत्रकृच्छता में पीने से लाभ होता है।
20. कांटा चैलाई(काटाभाजी) का क्वाथ पीने से मूत्र वृद्धि होकर सुजाक में लाभ होता है।
21. शिलाजीत के साथ लौह भस्म को लेने से लाभ होता है।
22. छोटा पका केला खाने से आमाशय, फुफ्फुस, वृक्क और मूत्र की जलन ठीक हो जाती है।
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