वीर्य प्रमेह रोग के लिए आयुर्वेदिक उपचार वीर्य प्रमेह (Spermatorrhea)
Virya Prameh Rog Ke Liye Ayurvedic Upchar, Spermatorrhea
जो लोग बचपन से ही कुसंगति में पड़कर वीर्य नाश करने लगते हैं, उनके प्रजनन अंग कमजोर असहाय और शिथिल पड़ जाते हैं। वीर्य की धारण शक्ति समाप्त हो जाती है और असमय वीर्य निकलता रहता है।
हस्तमैथुन भी इसका एक विशिष्ट कारण है। वीर्य प्रमेह का रोगी दिन-प्रतिदिन कमजोर, कृशकाय, दुर्बल असहाय-सा होता जाता है। वह आलस्य का शिकार हो जाता है। किसी काम में जी नहीं लगता। थोड़ा-सा काम करके रोगी थक जाता है, हांफने लगता है।
वीर्य प्रमेह का शिकार रोगी नपुंसकता(नामर्दी) से भी पीड़ित हो जाता है।
शिश्न भी कमजोर, असहाय, ढीला-ढाला, सिकुड़ा-सिकुड़ा रहता है।
रोगी जब मूत्र त्याग अथवा मल त्याग करता है, तभी वीर्य निकल आता है। रोग जब अत्यधिक बढ़ जाता है, तब मामूली-सी रगड़ या मामूली स्पर्श से भी वीर्यपात हो जाना आम हो जाता है। कई रोगी स्त्री का ख्याल आते ही वीर्यपात हो जाने की शिकायत करते हैं।
वीर्य प्रमेह में उपयोगी घरेलू चिकित्सा-
1. जंगली अजवायन का क्वाथ 50 मि.ली. सिरका एवं शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से लाभ होता है। इससे मूत्र भी साफ आने लगता है।
2. आँवलों का रस 15 मि.ली. में हल्दी 2 ग्राम एवं शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेह नष्ट हो जाते हैं।
3. चावलों के धोवन(तण्डुलोदक) में चन्दन घिसकर 20-20 ग्राम सुबह-शाम मिश्री एवं शहद मिलाकर सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।
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4. अपराजिता की जड़ का फाॅट सुबह-शाम सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।
5. बरियार(खरैंटी) के पंचांग का रस 15 मि.ली. सुबह-शाम सेवन करने से शुक्रमेह ठीक हो जाता है।
6. शतावरी का चूर्ण 10 से 20 ग्राम नित्य सुबह-शाम चीनी के साथ दूध में पेय बनाकर सेवन करने से शुक्रमेह ठीक हो जाता है।
7. विष्णुकांता(नील शंख पुष्पी) का स्वरस 25 से 50 मि.ली. या फाॅट 50 से 100 मि.ली. सुबह-शाम चीनी मिलाकर सेवन करने से शुक्र-प्रमेह ठीक हो जाता है।
8. अर्कपुष्पी(छरिबेल) की जड़ एवं सेमल की जड़ एक साथ घिसकर 6 मास तक नित्य सुबह-शाम चीनी मिलाकर सेवन करने से शुक्र-प्रमेह ठीक हो जाता है।
9. केले का स्वरस 25 से 50 मि.ली. सुबह-शाम सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।
10. इमली के बीजों का चूर्ण 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
11. आँवलों का चूर्ण 50 ग्राम, इमली के बीजों का चूर्ण 50 ग्राम, गोंद कतीरा 25 ग्राम।
सबको अलग-अलग चूर्ण बनाकर ईसबगोल की भूसी 25 ग्राम में अच्छी प्रकार मिलाकर रख लें।
4-4 ग्राम नित्य सुबह-शाम गोदुग्ध के साथ सेवन करने से 4-6 सप्ताह में लाभ हो जाता है।
यदि रोग अधिक पुराना हो तो अधिक दिन तक दें। यह अनुभूत योग है।
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12. इमली के बीजों की गिरी को पीसकर बट वृक्ष(बरगद) का दूध डालकर 12 घंटे तक खरल करें। फिर मटर के दाने के बराबर गोलियाँ बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम गाय के दूध के साथ दें। प्रमेह, वीर्यप्रमेह आदि में लाभ होगा।
13. बबूल(कीकर) के पत्तों को छाया में सुखाकर उसमें असगंध का चूर्ण समभाग मिलकर चूर्ण बना लें।
इसमें रूचि अनुसार खांड मिला लें। 6-9 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ देते रहें।
वीर्य संबंधी सभी प्रकार के दोष दूर होने से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है।
14. बबूल(कीकर) की कच्ची फलियाँ जिनमें अभी तक बीज न पड़े हों, छाया में सुखाकर बारीक पीसकर पिसी खांड मिला लें। 6-6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ प्रमेह एवं अन्य वीर्य विकारों में लेने से लाभ होता है।
15. सूखे आँवलों का चूर्ण एवं समभाग हल्दी का चूर्ण मिलाकर घी में धीमी आंच पर भून लें। इसमें समभाग मिश्री का चूर्ण मिला लें। 1-1 चम्मच नित्य सुबह-शाम ताजे जल या गर्म दूध के साथ दें। लाभ होगा।
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