रजोनिवृत्ति, आर्तवक्षयजन्य विकार, रजान्त विकार (Menopause, Change of Life)
परिचय-
जब स्त्रियाँ 45 से 60 वर्ष के बीच की आयु की होती हैं, तो प्रत्येक माह में आने वाला मासिकधर्म सदा के लिए बंद हो जाता है। मासिकधर्म सदा के लिए बंद होने को ही ‘रजोनिवृत्ति’ कहते हैं। यह स्त्री के शारीरिक स्वभाव पर निर्भर करता है कि 45 वर्ष की आयु में मासिकधर्म बंद हो या 50 वर्ष की आयु में। अपवादस्वरूप कुछ स्त्रियों में रजोनिवृत्ति 50 वर्ष से कुछ अधिक भी होती है।
कारण-
इसका मुख्य कारण मासिकधर्म जारी रखने वाली ग्रन्थियों डिम्बाशय आदि का निष्क्रिय होना। यह निष्क्रियता सदमा, मानसिक तनाव, शोक आदि के कारण होती है। यद्यपि ये कारण इस आयु से पहले भी प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं होता है कि इस आयु से पहले शरीर में नई कोशिकाओं का निर्माण जारी रहता है और स्नायुतंत्र पूर्ण स्वस्थ होती है। अतः उसमें इन्हें झेलने की क्षमता होती है। यह क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। इसके विपरीत संवेदनशीलता बढ़ जाती है। परिणाम छोटी-छोटी बातों के लिए भी मानसिक तनाव बढ़ जाता है।
मुख्य लक्षण-
निम्न लक्षण मुख्य रूप से होते हैं- जरायु का संकुचित होकर छोटा हो जाना, योनि का संकुचित होना, दुर्बलता, सिरदर्द, शरीर का विभिन्न भागों में रक्ताधिक्य, जरायु से अति रक्तस्राव, हिस्टीरिया, सिर में चक्कर, घबराहट, सारे शरीर में उत्ताप, हृदय का अधिक धड़कना, पाचनतंत्र में विकार होना आदि। मुख्य लक्षण होते हैं। ये सारे लक्षण किसी एक ही स्त्री में प्रकट हों, यह आवश्यक नहीं है। लेकिन अधिक से अधिक लक्षण प्रकट होने की संभावना अधिक होती है।
पहचान-
यदि रजोनिवृत्ति की आयु में रक्त प्रदर हो तथा पूरे शरीर में आग जैसी लपट हो, ब्रह्मतालु में जलन हो तो रजोनिवृत्ति के ही लक्षण होंगे, ऐसा मानकर अन्य निदान के सूत्र अपनायें। तदानुसार परीक्षण कर रोग का निश्चय करें।
परिणाम-
इस आयु में रक्तप्रदर के लक्षण देखते ही सावधान हो जायें। अन्य लक्षणों और जाँघों से रजोनिवृत्ति की पुष्टि हो जाये, तो चिकित्सा करें अन्यथा गर्भाशय या स्तन के कैन्सर, स्तन की रसूली, अनैच्छिक मूत्रस्राव आदि के लक्षण होते हैं। अतः प्रारम्भ से ही सावधान रहें।
आयुर्वेदिक चिकित्सा-
1. त्रिफलारिष्ट 15 से 30 मि.ली. समभाग जल मिलाकर भोजन के बाद प्रतिदिन दो बार दें।
2. अश्वगंधा घृत 3-6 ग्राम मिश्री के साथ चाटकर दूध पी लें।
3. अश्वगंधारिष्ट 20 मि.ली. समभाग जल मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम भोजन के बाद दें।
4. संगजराहत भस्म- आधा से एक ग्राम सुबह-शाम मक्खन या मलाई के साथ दें।
5. बोलबद्ध रस 250 से 500 मि.ग्रा. सुबह-शाम मिश्री मिले दूध से देने से रक्तस्राव में लाभ होता है।
6. आँवलों का मुरब्बा प्रतिदिन सुबह-शाम एक से दो की मात्रा में दें।
7. दाड़िमाव लेह 6 से 10 ग्राम प्रति मात्रा प्रतिदिन सुबह-शाम जल के साथ लेने से पित्तोप्रद सर्वांगिक दाह(जलन आदि) में लाभ होता है।
देसी योग-
1. जटामांसी का चूर्ण आधा से एक ग्राम या इसी का फाँट 1 से 2 औंस प्रतिदिन 2 से 3 मात्रायें देने से रजोनिवृत्ति, चिड़चिड़ापन एवं मानसिक विकार दूर हो जाते हैं।
2. धाय के फूलों का चूर्ण 10-10 ग्राम शहद अथवा चावल के धोवन के साथ सुबह-शाम देने से रजोनिवृत्ति कालिक रक्तप्रदर या अतिरिक्त रक्तस्राव नियंत्रित हो जाता है।
3. चन्दन का क्वाथ 50 मि.ली. प्रतिदिन 2 बार लेने से रजोनिवृत्ति कालिक अतिरिक्त रक्तस्राव(रक्तप्रदर) एवं शारीरिक जलन दूर हो जाती है।
4. दालचीनी का तेल 1 से 3 बूँद बताशे पर डालकर प्रतिदिन सुबह-शाम दें। रजोनिवृत्ति कालिक रक्त प्रदर में लाभ होगा।
Menopause Ke Baad Hone Wali Samasya Ke Upay
5. आँवलों का स्वरस 10 से 20 मि.ली. प्रतिदिन सुबह-शाम मिश्री घोलकर या आँवलों का समभाग चूर्ण मिश्री के साथ बना लें। 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम दें। शारीरिक दाह तथा ब्रह्मतालु जलन आदि में लाभ होता है।
6. गोंद कतीरा 10 ग्राम रात को आधा ग्लास जल में भिगो दें। सवेरे मिश्री मिलाकर शर्बत की भांति घोंटकर पिलायें। इसी प्रकार सुबह का भिगोया शाम को पिलायें। प्रतिदिन सेवन करने से रजोनिवृत्ति कालिक दाह(उत्ताप) आदि में लाभ होता है।
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