नपुंसकता क्या है?

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पौरूषहीनता या नपुंसकता का अर्थ है, संभोग में असमर्थता और इस असमर्थता का मतलब है शिश्न में दृढ़ता, उत्थान न आना, जो मैथुन कार्य में जरूरी होता है।

इसमें ऐसी स्थिति भी शामिल है कि प्रवेश के तत्काल बाद शिश्न शिथिल पड़ जाये।

शरीर शास्त्र की दृष्टि से शिश्नोत्थान की क्रिया समझना भी जरूरी है।

यौनेच्छा मस्तिष्क में पैदा होती है।

मस्तिष्क उसे करोड़ रज्जु को पहुंचाता है।

करोड़ रज्जु उसे कमर में स्थित शिश्नोत्थान केन्द्र तक ले जाती है।

इस केन्द्र को ज्ञान तन्तु शिश्न में कठोरता और विस्तार ले आते हैं।

शिश्न का कुछ हिस्सा स्पंज की तरह तन्तुओं से बना होता है।

उनमें रक्त का दबाव बढ़ने से शिश्न उत्थित अवस्था में आ जाता है, जो संभोग के लिए आवश्यक है। दिमाग में यौनेच्छा पैदा होने से लेकर शिश्न के प्रहर्षित होने की स्थिति तक की क्रिया बड़ी तेजी से हो जाती है।

हां कभी-कभी इस क्रिया में कुछ कारणों से बाधा उपस्थित हो जाती है।
चलिए अब इन कारणों पर ही विचार करते हैं..

जन्मजात कारण :

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जन्म से ही जब यौनांग की रचना संबंधी गड़बड़ी रहती है, तब कारण जन्मजात माना जाता है। जैसे- शिश्न का अविकसित रह जाना, शिश्नाग्र त्वचा का ठीक तरह से खुल नहीं पाना आदि। इन गड़बड़ियों में कुछेक तो सुधार योग्य होती हैं, जबकि कुछ असाध्य होती हैं। अब जैसे शिश्न के आगे की त्वचा न खुलना। इसमें छोटे से ऑपरेशन, जिसमें लिंग मुख के ऊपर की त्वचा काट दी जाती है और समस्या मिट जाती है। लेकिन यदि किसी का लिंग जन्म से ही अविकसित हो, उसे ठीक कर पाना प्रायः संभव नहीं होता।

शारीरिक कारण :

कुछ ऐसे शारीरिक कारण जो जन्मजात भी हो सकते हैं और बाद में भी पैदा हो सकते हैं, जो यौन अक्षमता का कारण बन जाते हैं जैसे- कामेन्द्रिय पर चोट लग जाना, अण्डकोष में वृद्धि होना, कमर पर उस जगह आघात लग जाना जो उत्थान केन्द्र माना जाता है, पौरूष ग्रन्थि(प्रोस्टेट ग्लैण्ड) का रोग, शिश्न का कैंसर आदि, उपदंश से उत्पन्न अर्बुद आदि।

अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों में गड़बड़ी-

पिट्यूटरी, थायराइड, एड्रिनल ग्रन्थियों में असामान्यता पैदा होने से जब हार्मोन संबंधी गड़बड़ियां उत्पन्न हो जाती हैं |

अतः तब नपुंसकता उत्पन्न हो सकती है।

मानसिक कारण-

वर्तमान में नपुंसकता का आतंक फैलाने में सबसे बड़ा हाथ मन में उपजी भ्रांति है। स्वयं की पौरूषता पर अविश्वास, हीनता की ग्रन्थि बन जाना, जिससे स्त्री को संतुष्ट न कर पाने का भय मन में बस जाता है। इसके अन्तर्गत वीर्य पतला हो गया है, शिश्न पर नसें उभर आयी हैं, शिश्न टेढ़ा हो गया है आदि-आदि भ्रमों के वशीभूत पुरूष अपने को यौन संबंधों में अक्षम पाता है, तब यह मानसिक कारण होता है।

मानसिक अवरोध-

कई मामलों में मानसिक अवरोध नपुंसकता का कारण बन जाता है। नीति-अनीति, पाप-पुण्य, अति आदर्शवादिता वर्षों के सफल यौन जीवन में अवरोध पैदा कर देते हैं, तब यह मानसिक अवरोधजन्य नपुंसकता कहलाती है।

केन्द्रीय वृत्ति-

कुछ मामलों में जब कोई पुरूष किसी विशेष नैन-नक्श, आकृति, रंग-रूप वाली स्त्री की कामना में इतना रम जाता है, कि उसे अन्य स्त्री में कोई रूचि नहीं होती। जब वह अपनी चाहत को पूरा नहीं कर पाता, तब अन्य स्त्रियों में रूचि न रहने से नपुंसकता की तरफ बढ़ता जाता है।

आयु संबंधी कारण-

जैसे-जैसे शरीर वृद्धता को प्राप्त होता जाता है, उसकी कार्यक्षमता घटती जाती है, यौन क्षमता भी आयु बढ़ने के साथ-साथ प्रभावित होती जाती है।

यदि पौष्टिक एवं बाजीकारक पदार्थों का सेवन न किया जाये, तब वृद्धावस्थाजन्य नपुंसकता उत्पन्न हो सकती है।

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