रक्तप्रदर, रक्त अधिक आना
परिचय-
स्त्री जननेन्द्रिय से अधिक रक्त आना ‘रक्तप्रदर’ कहलाता है। यह दो प्रकार से आता है- (1.) मासिकधर्म में स्वभाविक मात्रा से अधिक रक्त आना। लेकिन अवधि 4 दिन तक होना। (2.) रक्त का स्राव तो सामान्य ही आता है लेकिन अवधि 4 दिन से अधिक होना। कुछ ऐसी स्त्रियाँ होती हैं, जिन्हें महीने में दो बार मासिकधर्म आता है। इनमें से किसी भी प्रकार का लक्षण क्यों न हो, उसे रक्त प्रदर कहते हैं।
कारण-
रक्त प्रदर के कई कारण हैं जिनमें से निम्न मुख्य हैं- बार-बार गर्भपात या गर्भस्राव होना, गर्भाशय में कैंसर, गर्भाशय में रसोली या ट्यूमर होना, गर्भाशय का स्थान च्युति, प्रसव के बाद गर्भाशय का अपने स्वाभाविक आकार में न आना, गर्भाशय का मुड़ जाना या उलट जाना, गर्भाशय प्रदाह, डिम्बगं्रथि या डिम्बप्रणाली का प्रदाह, हृदय एवं यकृत संबंधी कष्ट, गर्भाशय का संक्रमित होना, स्कर्वी रोग(विटामिन ‘सी’ का शरीर में अभाव होना), आर्तव उत्पादक ‘अन्तःस्रावों’ की अधिकता आदि कारणों से ‘रक्त प्रदर’ आता है।
लक्षण-
स्त्री जननेन्द्रिय(गर्भाशय) से रक्त अधिक आता है। रक्त लाल एवं थक्का-2 अधिक मात्रा में आता है। मासिक धर्म बंद होने(रजोनिवृत्ति) के समय अधिकतर स्त्रियाँ रक्त प्रदर की रोगिणी बन जाती है। रक्त प्रदर के साथ-साथ कटिशूल, अधिक रक्तस्राव के कारण कमजोरी चक्कर आना, पेण्डू में दर्द, बेचैनी, दुर्बलता आदि लक्षण भी होते हैं।
परिणाम-
रक्तस्राव अधिक होने से शरीर में रक्त की कमी, कमजोरी, चक्कर आना स्वभाविक ही है। यदि समय पर चिकित्सा की जाये तो रोगिणी शीघ्र स्वस्थ हो जाती है। यदि गर्भाशय में कैंसर के कारण रक्तप्रदर हो तो शल्य चिकित्सा से गर्भाशय को निकालने के बाद ही स्वास्थ्य लाभ होता है। अतः चिकित्सक को चाहिए कि पहले मूल कारण का पता लगाये, तदनुसार चिकित्सा करें।
आहार एवं पेय- शीतल शाक, कद्दू, कुलफा, पालक, तोरई, टिण्डा, मूँग की दाल, मूँग की खिचड़ी, दूध, अँगूर, नाशपाती, छुआरा दूध में उबाला हुआ आदि।
प्रतिकूल आहार एवं पेय-
गर्म पदार्थ, माँस, लाल मिर्च, गर्म मसाले, चाय, अधिक गर्म दूध, खटाई(कच्चे आम, इमली आदि) अहितकर है।
रोगिणी को अधिक परिश्रम एवं भार नहीं उठाना चाहिए। इसकी चिकित्सा नियमित रूप से कम से कम 3-4 मास तक करनी चाहिए, जब तक कि 3 मासिक चक्र अपने सही निश्चित समय से न आ जाये। चिकित्सार्थ निम्न औषधियों के साथ-साथ रोगिणी को शक्तिवर्धक एवं रक्तवर्धक औषधियों का भी सेवन करना चाहिए।
देसी योग-
1. सुर्वाली जिसे ‘सफेद मुर्गा’ भी कहते हैं। संस्कृत में ‘शितवार’ कहते हैं- इसके बीज भूनकर राख(भस्म) बना लें। 3-4 ग्राम दही के साथ सुबह-शाम खाने से अत्यार्तव(रक्तप्रदर) ठीक हो जाता है। यह वनौषधि शरीर से किसी भी प्रकार के रक्तस्राव में उपयोगी है।
2. अनार का छिलका बारीक पीसकर पानी में पकाकर कपड़े की गद्दी गीली करके योनि में रखें।
3. साभारा या बारतंग बिना पिसा समभाग 3-6 ग्राम शर्बत अंजबार के साथ प्रतिदिन 2 बार दें।
4. बबूल की छाल के क्वाथ को छानकर डूश करें।
5. लोध का चूर्ण 1 ग्राम में समभाग खाँड मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम जल के साथ दें।
6. बाँसा के पत्तों का स्वरस 10 मि.ली. या सूखे पत्ते का चूर्ण 5-10 ग्राम खाँड मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम दें।
7. गूलर के फल के चूर्ण में समभाग खाँड मिलाकर 2-3 ग्राम प्रतिदिन 3-4 बार दें।
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8. धाय के फूलों का चूर्ण 5 ग्राम खाँड मिलाकर दूध के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम दें।
9. आँवले के स्वरस में रूई तर करके गर्भाशय के मुख पर प्रतिदिन रखें।
10. छोटी माई का चूर्ण 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम प्रतिदिन सुबह-शाम जल के साथ दें।
11. बड़ी माई का चूर्ण 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ होगा।
12. दारू हल्दी का क्वाथ शहद का योग देकर सुबह-शाम 50 मि.ली. सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
13. चन्दन का क्वाथ 50 मि.ली. प्रतिदिन 2 बार लेने से श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।
14. हरी दूब का स्वरस 25 मि.ली. प्रति मात्रा सुबह-शाम सेवन कराने से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।
15. तेज पत्तों का चूर्ण गर्भाशय की शिथिलता के कारण रक्त प्रदर हो तो 1 से 4 ग्राम सुबह जल के साथ दें।
16. सेमर का गोंद(मोचरस) 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम दें।
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