अण्डकोष की खुजली के लिए आयुर्वेदिक उपाय
परिचय-
यदि सहलाने या नाखूनों से खुजलाने से क्षणिक आनंद या आराम अनुभव हो तो त्वचा के उस भाग को खुजली से आक्रान्त समझते हैं। यदि अण्डकोषों की त्वचा इस खुजली से आक्रान्त हो तो इसे अण्डकोषों की खुजली कहते हैं।
लक्षण-
कई बार तो इतनी तीव्र खुजली होती है कि रोगी को बेशर्म होकर लोगों के बीच भी खुजलाना पड़ता है। यदि नाखून गंदें हों तो खुजलाने से आक्रान्त त्वचा पर घाव भी हो जाते हैं। रोगी व्यथित होकर कष्ट से जीवन व्यतीत करता है।
कारण-
कई व्यक्ति स्नान के समय अण्डकोषों की त्वचा पर सफाई का ध्यान नहीं देते हैं। जांघिया, लंगोट या जो भी अंदर का वस्त्र होता है, उसकी नित्य सफाई नहीं करते हैं। भोजन में संयोग विरूद्ध आहार लेना, बराबर कब्ज़ रहना, गंदगी के कारण जुएँ पड़ जाना, कपड़ों की रगड़, शरीर में प्रोटीन और विटामिन बी-काॅम्पलेक्स की कमी आदि मुख्य कारण हैं। अतः चिकित्सा करने के साथ-साथ इन कारणों का भी ध्यान रखें।
अण्डकोषों की खुजली की आयुर्वेदिक घरेलू चिकित्सा-
Testicles Itching Treatment
1. मसूर की दाल को पानी में उबाल कर क्वाथ बना लें। इस क्वाथ से नित्य अण्डकोषों को धोयें फिर शुष्क करके बाहृय औषधियों का प्रयोग करें।
2. गन्धक या कमीला सरसों के तेल में मिलाकर नित्य 2-3 बार लगायें।
3. पीला मुसब्बर गुलाब के तेल में घोलकर फोतों पर नित्य 2-3 बार लगायें।
4. मुर्दासंग को हरे धनिया के रस और अर्क गुलाब के तेल(गुल रोगन तेल) में घिसकर नित्य 2-3 बार लगायें।
5. अण्डकोषों को साफ एवं शुष्क करके नित्य 2-3 बार नीम का तेल लगायें।
6. काली मिर्च दही में अच्छी प्रकार पीसकर, अण्डकोषों के मैल को साफ करके नित्य लगायें। लेप को कम से कम आधा घंटा तक लगा रहने दें। फिर जल से धो लें।
7. प्याज का रस शुद्ध सरसों के तेल में मिलाकर नित्य दो-तीन बार लगायें।
8. अण्डकोषों की खुजली अधिक उग्र हो तो 125 से 250 मि.ग्रा. नित्य सुबह-शाम कपूर सेवन करायें। साथ ही जसद भस्म तेल में घोलकर नित्य दो बार लगायें।
कण्डू से उत्पन्न खुजली हो तो..
9. गुग्गुल चैथाई से एक ग्राम सुबह-शाम दें।
10. छरीला से सिद्ध तेल अण्डकोषों की खुजली पर लगाने से लाभ होता है।
11. नागरमोथा को पीसकर अण्डकोषों पर लेप करने से अण्डकोषों की खुजली दूर हो जाती है।
12. नीम के पत्तों से सिद्ध तिलों का तेल नित्य दो बार लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
13. सफेद या लाल फूलों वाली कनेर(कनेल) की जड़ को तेल में धीमी आँच पर पकायें। इस प्रकार यह सिद्ध तेल लगाने से लाभ होता है।
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