लिंग में तनाव न आने का आयुर्वेदिक इलाज
लिंग में उत्तेजना न आना-
बहुत से पुरुष कहते हैं कि उनको तथा उनके शिश्न को जोश तो आता है लेकिन मैथुन प्रारम्भ होने से पूर्व ही शिश्न निस्तेज हो जाता है तथा उसके बाद काफी कोशिश करने के उपरान्त भी शिश्न उत्तेजित नहीं हो पाता।
कई रोगियों का कथन है कि मैथुन प्रारम्भ होने के कुछ क्षण के पश्चात् योनि में ही शिश्न की कठोरता समाप्त हो जाती है और बिना वीर्यपात हुए मैथुन का सारा जोश ठंडा पड़ जाता है।
चिकित्सा के लिए आने वाले कई युवा तथ प्रौढ़ व्यक्तियों का यह भी कहना है कि उनके मन में भयंकर कामोत्तेजना तो उत्पन्न होती है, लेकिन फिर भी शिश्न में किसी प्रकार की कोई गर्मी नहीं आती।
शिश्न ढीला व सुस्त बना रहता है।
कई पुरूषों का कहना है कि अकेले में उनके मन में तथा शिश्न में एकाएक जबरदस्त जोश उत्पन्न होता है।
लेकिन स्त्री के पास जाते ही सारा जोश एकाएक ठंडा पड़ जाता है।
शिश्न का उत्तेजित और कठोर न होना, सुस्त ढीला रहना नीचे बताये गये कारणों से हो सकता है..
1. रोगी पूर्व से ही शीघ्रपतन या स्वप्नदोष से पीड़ित हो, तो इस प्रकार सेक्स समस्या उत्पन्न हो सकती है।
2. रोगी पूर्व से ही धातु क्षीणता से पीड़ित अथवा उसका वीर्य अत्यधिक पतला पानी जैसा रहता हो।
3. रोगी वीर्य की कमी का शिकार रहता है, जिससे काफी कोशिश करने के बाद जाकर कहीं 1-2 बूंद वीर्य निकल पाता है।
4. रोगी काफी कम आयु से ही अत्यधिक मैथुन का आदि हो चुका होता है।
अथवा अत्यधिक स्त्रियों से मैथुन करने से शिश्न ढीला-ढाला, सुस्त, निस्तेज और बेजान हो जाता है।
5. रोगी वीर्य प्रमेह रोग से ग्रस्त रहता है, इसलिए शिश्न कमजोर हो जाता है।
6. रोगी अत्यधिक हस्तमैथुन, गुदामैथुन, पशु मैथुन तथा अन्य अप्राकृतिक मैथुन कर-करके शिश्न को काफी हानि कर बैठता है।
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7. रात-दिन स्त्रियों के बीच रहने, स्त्रियों के साथ रात-दिन अश्लील वार्तालाप करने तथा हमेशा स्त्रियों के बारे में सोचते रहने का प्रभाव भी शिश्न पर पड़ता है, जिससे शिश्न ठंडा, बेजान और शिथिल पड़ा रहता है।
8. कुछ रोगी काम के वशीभूत होकर रात-दिन शिश्न को स्पर्श व छूते रहते हैं अथवा उनके शिश्न के साथ अन्य स्त्री या पुरूष छेड़छाड़ करते रहते हैं। ऐसे लोगों का शिश्न भी ढीला-ढाला रहने लगता है।
9. स्नायु दुर्बलता एवं शारीरिक कमजोरी के कारण भी शिश्न सुस्त रहता है।
10. बुढ़ापा, बुढ़ापे की दुर्बलता एवं प्रौढ़ अवस्था में ही किसी-किसी का शिश्न जवाब दे जाता है।
आयुर्वेदिक चिकिस्ता-
1. अकरकरा 10 ग्राम, तुख्मरिहा 80 ग्राम, मिस्री 100 ग्राम। इन तीनों औषधियों को एकत्र करें। तीनों को घोट-पीसकर एक जान कर लें। पूर्ण पिस जाने के पश्चात् तीनों को छान लें। यह चूर्ण कई रोगों की एक दवा है। इसके प्रयोग से वीर्य के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। वीर्य गाढ़ा हो जाता है। नपुंसकता-नामर्दी का अंत हो जाता है। शिश्न शक्तिशाली हो जाता है। रोगी को पूर्ण तृप्ति प्राप्त होती है। 10 ग्राम चूर्ण दिन में 2 बार सुबह-शाम सेवन करने का निर्देश देने से पीड़ित रोगी को आशातीत लाभ प्राप्त होता है।
मैथुन से एक घण्टा पूर्व रोगी को सेवन करने को दिया जाये तो रोगी पूर्ण सक्षमता से मैथुन करता है।
2. दूब 30 ग्राम, सेंधा नमक 30 ग्राम, असगंध 30 ग्राम, बकरी का दूध ढाई किलोग्राम, घी 250 ग्राम। ये सभी औषधियां अति उपयोगी हैं। बकरी का दूध लेना अधिक हितकर है। बकरी का दूध न मिले तो गाय का दूध लें। उपरोक्त सभी औषधियां घी सहित दूध में डाल कर भली-भांति पका लें। जब दूध पूरी तरह से जल जाये और केवल घी शेष रह जाये, तब उतार कर छान लें और इस घी को किसी शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। इस घी को शिश्न पर मलने से शिश्न पूर्ण सक्षम शक्तिशाली-सबल, मजबूत हो जाता है। ढीला-ढाला, असहाय शिश्न पूर्ण सक्षमता से कठोर व उत्तेजित होकर मैथुन योग्य बन जाता है।
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3. अकरकरा 5 किलोग्राम, मुनक्का 5 किलोग्राम, श्वेत धौंघची 5 किलोग्राम, दालचीनी 5 किलोग्राम। ये सभी औषधियां बहुत गुणकारी हैं। इनकी प्रभावशक्ति अति प्रबल सिद्ध होती है। सभी औषधियों को पानी के साथ घोंट-पीसकर एक समान बारीक कर लें। बारीक पिस जाने के बाद यह अति शक्तिशाली तिला बन जाता है। इस तिले को आवश्यकतानुसार कमजोर-असहाय, दुर्बल, ढीले-ढाले शिश्न की त्वचा पर मलने का निर्देश दें। इसके प्रयोग से शिश्न के अंदर नई जीवन शक्ति का संचार हो जाता है। शिश्न मैथुन के समय कठोर होने लगता है। रोगी को यौन तृप्ति प्राप्त होने लगती है।
4. ताल मखाना 5 ग्राम, शतावर 5 ग्राम, कौंच के बीज छिले हुए 5 ग्राम, खरेटी के बीज 5 ग्राम, गोखरू 5 ग्राम, मिस्री 5 ग्राम। ये सभी औषधियां प्राप्त करें और अलग-अलग घोट-पीसकर तथा छानकर आपस में मिलाकर एक जान कर लें। अंत में महीन घुटी-पिसी हुई मिस्री मिलाकर सबको एक कर लें। इस चूर्ण को किसी शीशी में भरकर रख लें।
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इस चूर्ण की एक मात्रा 6 ग्राम तक की होती है। 6-6 ग्राम की 1-1 मात्रा दिन में 2 बार अथवा आवश्यकतानुसार गाय के दूध के साथ प्रयोग करने का निर्देश दें। यह अति गुणकारी चूर्ण है। इसके प्रयोग से शिश्न शक्तिशाली हो जाता है। नपुंसकता, शीघ्रपतन, स्वनदोष तथा धातु क्षीणता का भी समूल नाश हो जाता है। 21 दिन तक प्रयोग करने से रोगी के अंदर अद्भुत बल वीर्य कांति आ जाती है। वीर्य प्रमेह तथा वीर्य के अन्य सभी दोष भी इसके प्रयोग से नष्ट हो जाते हैं।
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