सुजाक क्या है?
सुजाक हो जाने पर व्यक्ति नपुंसक हो जाता है। सुजाक ‘गोनोकोक्कस’ नामक जीवाणु के संक्रमण कारण होता है। अंग्रेजी में इस रोग को गोनोरिया नाम से संबोधित किया जाता है।
सुजाक रोग से ग्रस्त पुरूष जब किसी स्वस्थ स्त्री से मैथुन करता है, तब यह रोग स्वस्थ स्त्री को भी रोगी बना देता है। इसी प्रकार जब कोई स्वस्थ पुरूष किसी सुजाक रोग ग्रस्त स्त्री के साथ मैथुन करता है, तब यह रोग सहज ही स्वस्थ पुरूष को रोगी बना देता है। रोगी को मूत्र त्याग करते समय दाह-जलन होने लगती है। उसके पश्चात् मूत्र नलिका से पीप(मवाद) आने लगता है। वेश्यायें इस रोग को अधिक फैलाती हैं। इस रोग को ‘संक्रामक रोगों’ की श्रेणी में रखा गया है। सूक्ष्मदर्शी यन्त्र की सहायता से इस रोग के जीवाणुओं को देखा जा सकता है। सुजाक की अति उपयोगी, असरकारक आयुर्वेदिक चिकित्सा नीचे विस्तार से उल्लेख की जा रही है। प्रस्तुत सभी आयुर्वेदिक योगों में से कोई भी एक योग अपनी सुविधा एवं विवेक से चुनकर पीड़ित रोगियों को सेवन करने का निर्देश दें।
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सुजाकनाशक आयुर्वेदिक योग-
1. योग-
नीम की छाल, पीपल वृक्ष की छाल, खैर की छाल, अड़ूसे के पत्ते, अर्जुन की छाल, त्रिफला और विजयसार प्रत्येक 100-100 ग्राम। गुग्गल उपर्युक्त सभी के बराबर।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियाँ एकत्र करें। सभी को कूट-पीसकर बारीक चूर्ण करें और कपड़छान करके तोल लें।
जितना वज़न आये उतना गुग्गल मिलाकर घोंट-पीसकर एक जान चूर्ण कर लें।
उसके पश्चात् इस चूर्ण की 6-6 ग्राम की गोलियों का निर्माण कर लें।
1-1 गोली दिन में 2 बार(सुबह-शाम) मधु के साथ सेवन करने का निर्देश दें।
यह अति उपयोगी, असरकारक सुजाक नाशक गोली है।
इसको सेवन कराने से आतशक-उपदंश, फिरंग का भी नाश हो जाता है।
इसके सेवन से कुछ ही महीनों में सुजाक को पूरी तरह नष्ट हो जाता है और रोगी स्वस्थ हो जाता है तथा उससे उत्पन्न नपुंसकता दूर होती है।
2. योग-
नीम की छाल, नीम के पत्ते, बेल के साफ-सुथरे पत्ते, शरपुंखा की जड़ तथा स्वर्णक्षीरी की जड़ की छाल प्रत्येक 100 ग्राम।
विधि- उपर्युक्त इन सभी औषधियों को कूट-पीसकर उसका क्वाथ तैयार करें।
यह क्वाथ 60 मि.ली. सेवन कराने से सुजाक का अन्त हो जाता है।
इसके साथ-साथ यह उपदंश-फिरंग, आतशक को भी नष्ट कर देने की अद्भुत क्षमता रखने वाला बेजोड़ रामबाण अचूक क्वाथ है।
3. योग-
कबाब चीनी, शुद्ध बिरोजा, बड़ी इलायची के बीज तथा तबाशीर प्रत्येक 6 ग्राम तथा मिश्री 20 ग्राम।
चंदन का तेल आवश्यकतानुसार।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियों को कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें।
सभी औषधियाँ एक जान हो जायें, तब उसमें बारीक पिसी हुई मिश्री मिलाकर पुनः एक जान चूर्ण बनायें।
उसके पश्चात् इस चूर्ण में आवश्यकतानुसार चंदन मिलाकर एक शीशी में बंद करके सुरक्षित रख लें।
यह अति उपयोगी चूर्ण है जो नये-पुराने सभी प्रकार के सुजाक की बेजोड़ औषधि है।
इसका असर रामबाण अचूक होता है।
2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने का निर्देश देने से पीड़ित रोगी को आशातीत लाभ हो जाता है।
मूत्र साफ तथा बिना किसी रूकावट के उतरने लगता है। पीप(मवाद) भी बंद हो जाता है।
4. योग-
मेंहदी के ताजा पत्ते, रसौंत, गेरू और सफेद सुरमा प्रत्येक 25-25 ग्राम।
विधि- उपर्युक्त चारों औषधियों को महीन घोट-पीसकर एक लीटर स्वच्छ जल में घोलकर आग पर उबाल दें।
जब आधा लीटर जल शेष रह जाये, तब उतार कर ठंडा शीतल कर लें और किसी शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें।
इस घोल को पिचकारी के रूप में प्रयोग किया जाता है।
आवश्यकतानुसार मात्रा में प्रतिदिन प्रातः पिचकारी देने से सुजाक का अन्त हो जाता है।
यह रोग परीक्षित है। इसकी प्रभावशक्ति अति प्रबल होती है। यह तीव्रता से सुजाक से रोगी को मुक्त कर देता है।
5. योग-
छोटी इलायची 10 ग्राम, गेरू 6 ग्राम, कीकर का गोंद 12 ग्राम, रोगन संदल 12 ग्राम, कबाबचीनी 10 ग्राम, तबाशीर कबूद 12 ग्राम, रोगन बिरोजा 12 ग्राम, भुनी फिटकरी 12 ग्राम कर्पूर 6 ग्राम।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियों को कूट-पीसकर एक जान कर लें।
जब अच्छी तरह घुट-पिस जाये, तब अन्त में तेल-रोगन उसमें मिलाकर बेर के बराबर की गोलियों का निर्माण कर लें।
ये गोलियाँ सुजाक का समूल नाश करके रोगी को स्वस्थ कर देती हैं।
सुजाक के सभी उपद्रव आदि इसके प्रयोग से नष्ट हो जाते हैं।
पीप, जलन, दाह, पीड़ा, मूत्र साफ न आना, मूत्र कष्ट देकर आना, मूत्र रूक-रूक कर आना आदि विकार दूर हो जाते हैं।
सेवन विधि- रोग की तीव्रता के अनुसार 1-2 गोली दिन में 2 बार अथवा आवश्यकतानुसार सेवन करने का निर्देश देने से आशातीत लाभ होता है। यह अचूक रामबाण योग है, निष्फल नहीं जाता।
6. योग-
कलमीशोरा 6 ग्राम, शीतल चीनी 6 ग्राम, रेवंद चीनी 8 ग्राम, श्वेत जीरा 12 ग्राम, खरबूजे के बीज 12 ग्राम, मिश्री 36 ग्राम।
विधि- उपर्युक्त सभी औषधियाँ को एकत्र करें और पीसकर 250 मि.ली. पानी में मिलाकर छानकर रख लें।
छन जाने के उपरान्त महीन पिसी हुई मिश्री मिला दें।
इस औषधि को 3-4 भागों में विभाजित कर दिन में 3-4 बार पीड़ित रोगी को पीने के लिए दें।
उपरोक्त औषधियाँ एक दिन की मात्रा है, जो 3-4 बार दी जाती है।
यह परीक्षित योग है जो निश्चय ही एक सप्ताह में कठिन से कठिन सुज़ाक को भी नष्ट कर देता है।
उपर्युक्त सभी औषधियाँ सुजाक का अन्त कर देती हैं। इनकी प्रभावशक्ति अति प्रबल होती है।
इस योग का असर तीव्र गति से होता है और सुजाक के समस्त उपद्रवों पर अंकुश लग जाता है।
सुजाक के अलावा भी यह अन्य कई प्रकार के प्रमेहादि रोगों के लिए उत्तम फलदायी योग है।
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