बाँझपन के लिए घरेलू आयुर्वेदिक उपाय
परिचय-
संतान उत्पन्न करने की क्षमता के अभाव को बाँझपन कहते हैं।
संतान की उत्पत्ति के लिए पुरूष के वीर्य का स्वस्थ होना और स्त्री के रज का शुद्ध होना परमावश्यक है।
इसलिए बाँझपन चिकित्सा में पति एवं पत्नी दोनों का परीक्षण जरूरी होता है |
क्योंकि यदि दोनों में से एक भी विकारग्रस्त हो तो संतान होने की संभावना कम होती है।
चिकित्सा-
1. सर्वप्रथम स्त्री एवं पुरूष के रज एवं वीर्य को शुद्ध करने की चिकित्सा करें।
2. यदि स्त्री में किसी भी प्रकार की मासिक धर्म की गड़बड़ी, रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर आदि कुछ भी हो तो उसकी चिकित्सा करायें।
फिर बाँझपननाशक योगों को दें।
3. यदि पति-पत्नी में किसी को भी रक्त का अभाव हो या पोषक तत्वों की कमी हो तो उसकी पूर्ति करें।
औषधियों के साथ-साथ लौह एवं विटामिनयुक्त आहार भी दें।
4. शरीर से दोनों पूर्णतः स्वस्थ भी हों इसके लिए विटामिन ‘ई’ युक्त आहार दें। इससे प्रजनन क्षमता में वृद्धि होती है।
5. अश्वगंधा का चूर्ण 3-6 ग्राम में नित्य घी और शक्कर मिलाकर चाटकर ऊपर से दूध पीने से बाँझपन दूर हो जाता है।
रजोधर्म के प्रारम्भ होते ही 10 दिन तक प्रत्येक मासिकधर्म में जब तक लाभ न हो जाये(गर्भाधान न हो जाये) इसे दें।
6. कटसरैया की जड़ को पीसकर तीन दिन तक पुरूष और स्त्री को गाय के दूध के साथ पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है।
इसे मासिकधर्म के चैथे दिन से पति-पत्नी दोनों को दें।
सेवनकाल की अवधि में तीन दिन तक दोनों संभोग से दूर रहें।
तीन दिन बाद समागम करें, सफलता मिलेगी।
यह प्रक्रिया प्रत्येक मासिकधर्म के चैैथे दिन से तब तक जारी रखें, जब तक गर्भधारण न हो जाये।
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7. काँटा सलाई का पौधा गज भर ऊँचा होता है और पत्ते लाल मिर्च की भाँति कुछ खुरदरे होते हैं।
यह वनस्पति मात्र बन्ध्यापन में ही प्रयुक्त होती है।
जिस स्त्री को संतान न होती हो, तथा मासिकधर्म के समय गर्भाशय में दर्द होता हो, उसे इसके मुट्ठी भर पत्तों का रस निकाल कर दही 50 ग्राम में मिलाकर तीन दिन तक खाली पेट दें।
इस अवधि में तीनों दिन बिना नमक की रोटी, दही के साथ खायें।
इसके प्रयोग से गर्भाशय के दोष ठीक होकर गर्भ हो जाता है।
औषधि सेवन मासिकधर्म के चैथे दिन से स्नान के बाद से प्रारम्भ करें।
इन तीन दिनों में संभोग भी नहीं करें।
इससे रज-वीर्य का भण्डारण होता है और सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
यदि प्रथम चक्र में सफलता नहीं मिले तो घबरायें नहीं। पुनः अगले मासिकधर्म में प्रयोग जारी रखें।
8. कायफल और मिश्री समान मात्रा में लेकर पीसकर कपड़छान कर लें।
बन्ध्या स्त्री को 7.5 ग्राम चूर्ण मासिकधर्म से शुद्ध होने के बाद लगातार तीन दिन तक देने से स्त्री गर्भ धारण करने के योग्य हो जाती है।
इस औषधि से जी मिचलाता है, इसलिए कमजोर प्रकृति वाली स्त्री के मत दें या सावधानी से दें।
9. यदि बाँझपन के कारण गर्भाशय का मुँह बंद हो तो खतमी के बीजों के काढ़े को टब में डालकर इस टब में रोगिणी को बैठायें।
इसी काढ़े में सफेद एवं साफ कपड़ा या रूई तर करके नित्य कुछ देर गर्भाशय के मुँह पर रखें।
इन योगों से गर्भाशय का मुँह खुल जाता है।
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टब में क्वाथ इतना हो जिससे कमर से नीचे का भाग अच्छी प्रकार डूब जाये।
10. गोरखमुण्डी और जायफल का समभाग कपड़छान कर चूर्ण बना लें।
7 ग्राम मासिकधर्म के चैथे दिन से लगातार 5 दिन तक देने से गर्भधारण हो जाता है।
अनुपान में इस योग के साथ बकरी का दूध दें।
11. काले धतूरे के फलों का चूर्ण 150 मि.ग्रा. में असमान मात्रा में घी और शहद मिलाकर, मासिक धर्म के चैथे दिन से लगातार तीन दिन तक चाटने से गर्भधान में सहायता मिलती है।
12. पीपल(अश्वत्थ) के सूखे फलों के चूर्ण की फँक्की कच्चे दूध के साथ ऋतु धर्म से शुद्ध होने के बाद 14 दिन तक लेने से बन्ध्यापन दूर हो जाता है।
13. पुत्रवन्ती(हिन्दी/यूनानी नाम) यदि बाँझ स्त्री मासिकधर्म के बाद 3 दिन तक इसे पहले दिन 1 बीज, दूसरे दिन 2 बीज और तीसरे दिन 3 बीज इस प्रकार ले, तो वह गर्भवती हो जाती है।
यह अद्भुत योग है। मासिकधर्म के चैथे दिन से इसे प्रारम्भ करके छठें दिन तक दें।
यदि प्रथम चक्र में ही गर्भाधान नहीं हो तो अगले चक्रों में भी इस क्रम को सफलता मिलने तक जारी रखें।
14. जिस स्त्री के बच्चे जीवित नहीं रहते हों अथवा जिस स्त्री के बच्चे पैदा ही न होते हों, उसको शिवलिंगी के बीज 27, पीपल की जटा 6 ग्राम, गजकेशर 6 ग्राम पीसकर तीन टिकड़ियाँ बना लें।
जब स्त्री मासिकधर्म से शुद्ध होकर स्नान कर ले तो कपिला गाय के दूध की खीर में गाय का घी और शक्कर मिलाकर उसमें शिवलिंगी के तीन बीज और एक टिकड़ी मिला लें।
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फिर पति से संभोग करके ऋतुदान लेकर ऊपर से इस खीर को खायें। इस प्रकार 3 दिन तक खाने से गर्भ धारण हो जाता है।
15. समुद्रफल(वनस्पति) 125 से 250 मि.ग्रा. दही के साथ कुछ दिन तक नित्य खाने से बन्ध्या स्त्री गर्भधारण योग्य हो जाती है।
16. पलास की जड़ की छाल 4 ग्राम, नागरमोथा 4 ग्राम, गजपीपल 6 ग्राम और समुद्रफल 4 ग्राम पीसकर गाय के दूध के साथ मासिकधर्म के चैथे दिन से लगातार तीन दिन तक लेने से बन्ध्यापन दूर हो जाता है।
17. सरसों को पीसकर उसका शफा बनाकर मासिकधर्म के स्नान(चैथे दिन) के बाद तीन दिन तक योनि में रखने से गर्भधारण हो जाता है।
नोट: उपरोक्त बताये सभी योग अथवा उपयों को अपनाने के लिए हमारी ओर से किसी पर भी कोई दबाव नहीं है।
इन उपायों को अपनाना या ना अपनाना पूरी तरह आप पर निर्भर करता है।
साथ ही चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।
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