Sujak Rog Ke Liye Desi Ayurvedic Upchar, cure of Gonorrhea

सुज़ाक, उष्णवात, भृशोष्णवात, मूत्र में पीप आना, आगंतुकमेह, पूयमेह, व्रणमेह

गोनोरिहया(Gonorrhea)-

परिचय-

यह रोग स्त्री से पुरूष को और पुरूष से स्त्री को संभोग द्वारा हो जाता है।

कारण-

यह ‘नाइजीरिया गोनोरियाई’ नामक जीवाणुओं द्वारा एक से दूसरे को हो जाता है। जो स्त्री या पुरूष इस रोग से ग्रस्त हो जाता है, उसके साथ जो स्वस्थ पुरूष या स्त्री संभोग करती है। वह इस रोग का शिकार हो जाती है।

संक्रमण काल-

इसका संक्रमण काल 2 से 10 दिन तक का होता है। यह अवधि स्त्री या पुरूष दोनों मंे समान होती है।

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लक्षण-

यदि पुरूष इस रोग से ग्रस्त स्त्री के साथ संभोग करे, तो इस रोग के जीवाणु, शिश्न द्वारा मूत्र मार्ग में चले जाते हैं और असाधारण संख्या में बढ़ने लगते हैं। इससे प्रारम्भ में रोगी को दर्द एवं बेचैनी होती है। धीरे-धीरे मूत्र के साथ मवाद आने लगता है। मूत्र बार-बार आने लगता है। यदि उचित समय पर चिकित्सा उपलब्ध न हो तो सिरदर्द, ज्वर और हृदय की धड़कन अधिक तेज हो जाती है। मूत्र बूंद-बूंद करके आता है। मूत्र करते समय तीव्र पीड़ा होती है।

सुजाक से बचाव-

1. वेश्याओं के साथ भी संभोग करने से परहेज रखें।

2. संभोग के समय कंडोम का प्रयोग करें।

3. संक्रमण होने का भय हो तो डिटोल साबुन या सेवलोन से प्रजनन अंगों को संभोग के तुरन्त बाद अच्छी प्रकार साफ करें।

4. संभोग के तुरन्त बाद लिंग को गर्म पानी से धो लें या मूत्र करके मूत्र नली की तथा लिंगमुण्ड को ढकने वाली त्वचा को अंदर-बाहर से मूत्र नली अच्छी प्रकार से धो लें।

5. शिश्न धोने के बाद सोडा-बाई-कार्ब के घोल की कुछ बूंदें शिश्न छिद्र में डाल दें। इससे संभोग जनित संक्रमण की संभावना कम हो जाती है।

6. पोटाशियम परमेंगनेट के घोल(1ः5000) से लिंग, मूत्रनली एवं मूत्राशय को धो लें। इस घोल को मूत्रनली से मूत्राशय में प्रविष्ट करके 5-7 मिनट तक अंदर रहने दें। फिर मूत्र द्वारा घोल को बाहर निकाल दें।

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सुजाक के उपयोगी घरेलू योग-

Sujak Rog Ke Liye Desi Ayurvedic Upchar

 

1. जंगली उशबा का चूर्ण 15 से 25 ग्राम का क्वाथ बनाकर नित्य एक बार सेवन करने से लाभ होता है।

2. सफेद जीरा 4 भाग, खून खराबा 2 भाग, कलमी शोरा 5 भाग, धनिया 5 भाग और गुलाब 2 भाग चूर्ण बना लें। 1 से 2 ग्राम सुबह-शाम जल के साथ दें। रोग नया हो या पुराना इसके सेवन से लाभ होता है।

3. हाऊबेर का चूर्ण दिन में 2 बार 6-6 ग्राम सेवन करने से नया और पुराना रोग में लाभ होता है।

4. चन्दन का तेल 10 से 20 बूंदे इलायची और वंशलोचन के साथ या सौंठ अथवा अजवाइन के फाॅट के साथ नित्य 3 बार दें आशातीत लाभ होगा।

5. चावल के धोवन में चन्दन घिसकर 10 से 20 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम दें, लाभ होगा।

6. सुहागे के घोल में ढाई प्रतिशत से मूत्रनली में पिचकारी करने से लाभ होता है। यह एक प्रतिदूष योग है।

7. पुराने सुजाक में कलमीशोरा 5 भाग, दालचीनी 4 भाग, हरड़ 3 भाग, पाषाणभेद 3 भाग, इलायची 5 भाग एवं चीनी 20 भाग के योग से अवलेह बनाकर 4-4 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।

8. पुराने सुजाक में सलईगुग्गुल आधा से एक ग्राम सुबह-शाम घृत के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

9. छोटी इलायची का चूर्ण आधा से 2 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।

10. शीतल चीनी सफल प्रतिदूषक है। यह मूत्र भी लाता है। अतः पुराने सुजाक में इसका प्रयोग अधिक होता है। 3 से 6 ग्राम फिटकरी, 250 मि.ग्रा. दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ होता है।

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11. गिलोय(गुरूच), हरिन्द्रा एवं आँवला का क्वाथ या केवल स्वरस और शहद मिलाकर नित्य 3 बार सेवन करने से नया सुजाक प्रमेह एवं मूत्र संबंधी कष्ट तथा जलन दूर हो जाती है।

12. बरगद की जटा का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम लेने से सुजाक में लाभ होता है।

13. सुजाक में पीपल वृक्ष(अश्वत्थ) की 4 से 5 कोपलों को पीसकर दूध में उबाल कर सुबह-शाम दें।

14. पीपल वृक्ष की छाल का क्वाथा 25 से 50 मि.ली. सुबह-शाम सुवन करने से सुजाक में लाभ होता है।

15. शीशम के पत्तों का क्वाथ 25 से 50 मि.ली. सुबह-शाम लेने से सुजाक में लाभ होता है।

16. सुजाक के रोगियों के लिए पोये(पोई, पोरो) का सारा लाभप्रद है। इसके पत्ते शीशीम के पत्ते जैसे होते हैं, परन्तु अपेक्षाकृत मोटे तथा माँसल होते हैं। साग हल्का लुआबदार होता है। यह बहुवर्षायु फैलने वाली लता है। बीज गोल, हरे, पकने पर कालापन लिये बैंगनी रंग के होते हैं।

17. मेंहदी के पत्तों को पानी में रात को भिगो दें। प्रातः पत्तों को अच्छी प्रकार उसी पानी में मलछान कर, खाण्ड मिलाकर दिन में 2 बार पिलायें। आशातीत लाभ होगा।

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